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मध्य प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर को दलित समीकरण से साधेगी बीजेपी ? बुंदेलखंड के वोट बैंक पर डालें एक नजर

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MP Election 2023 : मध्य प्रदेश में चुनाव के पहले सभी पार्टियां अपने-अपने समीकरण बैठाने में जुट गईं हैं. इस बीच देखा जा रहा है कि प्रदेश में चुनावी सियासत में सामाजिक समीकरण अन्य सभी मुद्दों पर हावी हो रहा है जिसने बीजेपी की टेंशन बढ़ा दी है. इस चुनाव में सत्ता विरोधी माहौल से निपटने के लिए बीजेपी का जोर आदिवासी व दलित समुदाय को पार्टी के पक्ष में लाना है, जो कभी कांग्रेस का बड़ा समर्थक बताया जाता है. यही वजह रही कि खुद पीएम मोदी प्रदेश के दौरे पर पहुंचे और दलित समुदाय को साधने का प्रयास किया. कांग्रेस अपनी रणनीति पर काम कर रही है और अपने पुराने वोटरों को ध्यान में रखकर चुनावी तैयारी कर रही है. कांग्रेस के पुराने समर्थकों में आदिवासी व दलित समुदाय का तबका बड़ा रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सागर के पास संत रविदास के भव्य मंदिर का शिलान्यास करना पार्टी के भावी दलित रणनीति से जुड़ा हुआ है. इस अवसर पर पीएम मोदी ने शनिवार को कहा कि उनकी सरकार के शासनकाल में दलितों, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और आदिवासियों को उचित सम्मान मिल रहा है जबकि पिछली सरकारों ने इन वर्गों की उपेक्षा करने का काम किया और उन्हें केवल चुनावों के दौरान याद किया. प्रधानमंत्री के उक्त बयान को जानकार इन वर्गों को बीजेपी के पक्ष में लाने की कवायत के तौर पर देख रहे हैं. अपने संबोधन में पीएम मोदी की ओर से यह भी आरोप लगाया गया कि पिछली सरकारें गरीबों को पानी उपलब्ध कराने में विफल रहीं जबकि उनकी सरकार के दौरान जल जीवन मिशन के कारण दलित बस्तियों, पिछड़े इलाकों और आदिवासी क्षेत्रों को अब नल से जल मिल रहा है.

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सागर पर एक नजर

सागर की बात करें तो ये बुंदेलखंड का एक बड़ा शहर है. बुंदेलखंड वह क्षेत्र है जो मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश में बंटा है. इस इलाके में दलित आबादी बहुत ज्यादा है. जब बसपा अपनी राजनीति के शिखर पर थी तो दलित समुदाय के समर्थन व पिछड़ों को मिलाकर बने बहुजन समुदाय से बुंदेलखंड में खासी मजबूती भी उसे मिली थी. अब जबकि बसपा कमजोर नजर आ रही है तो इस वोट बैंक पर बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस की भी पैनी नजर है. दोनों ही पार्टियां इस वोट बैंक को अपने पाले में करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाते दिख रहे हैं.

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अब जरा पुराने आंकड़ों पर नजर डालें तो भारतीय राजनीति में बसपा के उभार के पहले दलित समुदाय कांग्रेस का मजबूत समर्थक वर्ग रहा है. बाद में जब कांग्रेस कमजोर पड़ी तो उसका एक वर्ग बीजेपी के साथ भी जुड़ गया. अगड़े-पिछड़े वर्ग के समर्थक वर्ग के साथ दलित समर्थन भी मिलने से बीजेपी को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर अच्छा प्रदर्शन करने का मौका मिला था, लेकिन अब स्थितियां अलग नजर आ रही हैं. सूबे में बीजेपी को लगातार सत्ता में लगभग दो दशक (बीच के सवा साल छोड़कर) हो चुके हैं. ऐसे में सत्ता विरोधी माहौल भी पार्टी की परेशानी का सबब बन सकता है.

बीजेपी का मजबूत

बीजेपी के मजबूत पक्ष की बात करें तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान है, जो बीते डेढ़ दशक से मध्य प्रदेश की कमान संभाले हुए हैं. वे मुख्यमंत्री के साथ बीजेपी के निर्विवाद नेता बने हुए हैं. ऐसे में बीजेपी को पिछड़ा वर्ग का बड़ा समर्थन मिलता नजर आ रहा है. लेकिन अन्य समुदायों में नाराजगी भी झलक रही है. नाराज समुदाय में दलित समुदाय भी है, जिसके करीब 15 से 16 फीसद मतदाता है, जिनका असर राज्य की अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 35 सीटों के अलावा लगभग 84 सीटों पर देखने को मिलता है.

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पिछले चुनाव का हाल

अब बीजेपी ने संत रविदास के भव्य मंदिर से अपने इस दलित समर्थन को मजबूत करने का प्रयास किया है. दरअसल, बीजेपी को पिछले चुनाव में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर झटका लगाता दिखा था. इन 35 सीटों में से बीजेपी को 18 सीटों पर जीत मिली थी. 17 सीटें कांग्रेस के खाते में गई थी. इसके पहले 2013 के चुनाव में बीजेपी ने 28 सीटें जीती थी.

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