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राजनेताओं को कलाकारों की जरूरत पड़ रही है तो ये अच्छा है ना, जानें ऐसे क्यों कहा अभिनेत्री पल्लवी जोशी ने

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नेशनल अवार्ड विनिंग अभिनेत्री और निर्मात्री पल्लवी जोशी की फ़िल्म द वैक्सीन वॉर जल्द ही सिनेमाघरों में दस्तक देने जा रही हैं. वह इस फ़िल्म को देश की फ़िल्म करार देती हैं, जो सभी को देखनी चाहिए क्योंकि यह हमारे देश के वैज्ञानिकों के मेहनत और समर्पण की बात करती है उर्मिला कोरी से हुई बातचीत.

आपने पहले भी नाना पाटेकर के साथ काम किया है,इस बार काम करना कैसा रहा?

थोड़ा डर हमेशा लगता है, लेकिन वह पुरानी शराब की तरह है. उम्र के साथ वह परिपक्व हो गए हैं. मैंने उनके साथ 80 के दशक में त्रिशाग्नि और अंधायुद्ध में काम किया था और उसके बाद अब. उनके साथ एक सीन करते समय मैं अपनी लाइनें भूल गयी थी. मैं उन्हें देखती रह गयी थी. एक अभिनेता के रूप में जो उनसे परफॉरमेंस आ रही थी वह बहुत आकर्षक थी. मेरा मुंह खुला रह गया और उन्होंने मुझसे पूछा, क्या हुआ? तुम्हे अपनी लाइन बोलनी है. मैंने कहा कि सॉरी इतने शानदार थे कि मैं अपनी पंक्तियां भूल गयी. मैं एक आम दर्शक बन गयी थी. वह वैसा ही है वह बदला नहीं है.

आपकी द वैक्सीन वॉर पहले विदेश में रिलीज कर रहे हैं और फिर यहां रिलीज कर रहे हैं, इसके पीछे की रणनीति है?

कोई रणनीति नहीं है. हमने कश्मीर फाइल्स के लिए सारा रिसर्च अमेरिका और ब्रिटेन में किया था. चूंकि अधिकांश कश्मीरी पंडित अमेरिका और ब्रिटेन में ही बस गए हैं. हम ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड भी जाना चाहते थे लेकिन लॉकडाउन के कारण हम नहीं जा पाए थे. हम 2019 में गए और उनसे मिले और हमने उनसे वादा किया था कि हम उन्हें पहले फिल्म दिखाएंगे. इस बार जब हमने यह फिल्म बनाई तो कश्मीरी पंडितों ने हमें फोन किया और हमसे अनुरोध किया कि फिल्म को यहां रिलीज कीजिये, क्योंकि कश्मीर फाइल्स के बाद हम आपके लिए कुछ करना चाहते हैं. वे इस फिल्म का जश्न मनाना चाहते थे क्योंकि यह भारत के बारे में बात करती है और बहुत से कश्मीरी पंडित वैज्ञानिक, जैव-वैज्ञानिक और डॉक्टर हैं. वे फिल्म देखना चाहते थे क्योंकि उन्होंने भारतीय वैज्ञानिकों के साथ काम किया है और उन्हें व्यक्तिगत रूप से भी जानते हैं.

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क्या वे धारा 370 के बाद वापस आना चाहते हैं?

हां, वे चाहते हैं और उन्होंने कहा कि वे इसके लिए पैसे भी देंगे.कुछ जमीन खरीदेंगे और एक कॉलोनी बनाएंगे. उनमें से कुछ बहुत बूढ़े हैं और उन्हें उम्मीद है कि मरने से पहले वे अपने घरों को देख सकेंगे.

एक निर्माता के तौर पर क्या सिर्फ मुद्दों पर आधारित फिल्में बनाने पर ही फोकस है?

हमने शुरू में फाइल्स पर एक ट्रायलोजी की योजना बनाई थी, हमने ताशकंद फाइल्स बनाई, फिर कश्मीर फाइल्स और हमारी अगली फिल्म दिल्ली फाइल्स होगी. जिसमे हमने राष्ट्रीय प्रतीक शेर पर ध्यान केंद्रित किया है. जहां इसका अर्थ है सत्य की ही जीत होती है. हमने सत्य का अधिकार, न्याय का अधिकार और जीवन का अधिकार पर काम किया. हमने लाल बहादुर शास्त्री के जीवन पर किया क्योंकि हम सच नहीं जानते कि लोकतंत्र क्या है. दूसरा, हमने कश्मीर फाइलों को न्याय के अधिकार के रूप में तय किया. सांप्रदायिक दंगों में इतने लोग मारे गए और किसी को सज़ा नहीं हुई. हर किसी को जीवन का अधिकार है. अगर हम अपने लोकतंत्र को नहीं बचाएंगे, तो फिर वह एक दिन भीड़तंत्र में बदल जाएगा. इसलिए हमने दिल्ली फाइल्स पर फैसला किया है, उसके बाद विवेक एक और फिल्म करना चाहते हैं, देखते हैं चीज़ें कितनी वर्कआउट होती है. हम सिनेमा खुद को बिजी रखने के लिए नहीं बल्कि सार्थकता के लिए बनाना चाहते हैं. अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ना चाहती हूं, जिसे देखकर मेरे बच्चे कहें कि मेरी मां ने हमारे देश के लिए यह किया. वह मेरा सपना है. मैं अन्य निर्माताओं के साथ भी फ़िल्म बनाना चाहूंगी, बशर्ते मुझे कुछ अच्छा काम करने का मौका मिले.

हमने सुना है कि कुछ नेता ऐसी फिल्मों का प्रचार कर रहे हैं?

वैसे वो कौन हैं, अभी तक हमें राजनेताओं की जरूरत थी, लेकिन अब उन्हें कलाकारों की जरूरत पड़े तो अच्छा होगा.

आपने कश्मीर फाइल्स के लिए वाहवाही के साथ नेशनल अवार्ड भी जीता हैं, लेकिन आपको नफरत का भी लगातार सामना करते रहना पड़ता हैं? क्या इससे आपके जीवन में कोई बदलाव आया?

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बहुत, कई लोग मुझसे नफरत करने लगे हैं. इसने जिंदगी में एक बड़ा बदलाव भी लाया. हमने अपनी प्राइवेसी पूरी तरह खो दी. हमें सिक्योरिटी लेनी पड़ी. एक परिवार के रूप में हम अब एक ही कार में सफऱ नहीं कर सकते, हम हमेशा सुरक्षा की निगरानी में रहते हैं.

क्या इससे आपके बच्चों को परेशानी उठानी पडती हैं ?

सौभाग्य से नहीं. मैंने एक अच्छा काम किया था. कश्मीर फाइल्स की मेकिंग के दौरान मैं जानती थी कि विषय बहुत संवेदनशील है. जब विवेक ने कहा कि हमें इस पर फिल्म बनानी है तो मुझे कश्मीरी पंडितों की स्थिति की गंभीरता का अंदाजा नहीं था. मैंने थोड़ा बहुत सुना था लेकिन इतना नहीं. हर दिन हम चार लोगों से मिलते थे,जो हमें अपने परिवारों की कहानियां सुनाते थे कि कैसे उनकी बहनों के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया, दादा या पिता को जिंदा गोली मार दी गई. जो कहानियां हमने सुनीं वे भयावह थीं. जब मैंने कहानियां सुनीं, विवेक और मैं सो नहीं पाए और हमारे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया. मैंने विवेक से कहा कि इसे बनाना एक कठिन फिल्म है क्योंकि हमें वास्तविकता के प्रति सच्चा रहना होगा. इस फिल्म के बाद मुझे विवेक से दोबारा प्यार हो गया. इसे लिखना एक कठिन स्क्रिप्ट थी क्योंकि हमने बहुत कुछ सुना था. यही वह समय था जब मैंने बच्चों से बात करने का फैसला किया. मैंने अपने बच्चों से कहा कि हम इस विषय पर एक फिल्म की योजना बना रहे हैं और चूंकि वे सिनेमा में कदम रख रहे हैं तो इसका उनके भविष्य पर असर पड़ेगा. मैंने कहा कि इसके बारे में सोचो और मुझे बताओ. उन्होंने कहा, यह आपकी जिंदगी है, आपका सपना है इसलिए आगे बढ़ें. हमारे लिए चीज़ें आसान ही गयी. हमने उन्हें स्क्रिप्ट पढ़वाई और वे फिल्म में आना चाहते थे. उन्होंने प्रोडक्शन संभाला और वह सहायक और निर्देशक थे और उन्होंने फिल्म के रिसर्च पर भी काम किया. विवेक ने उनसे फिल्म में भी काम करवाया. जो जे.एन.यू. का दृश्य किया. उसमें वे हैं साथ में राजू खेर के बेटे भी. चूंकि उन्होंने इस पर काम किया था, इसलिए उनके जीवन पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा. वे जानते हैं कि ये सच हैं.

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आपके बच्चों के बारे में थोड़ा बताइये?

मेरी बेटी अभी 24 साल की है और वह प्रोडक्शन में है. उन्होंने हमारे साथ तीन फिल्में कीं थी. उन्होंने हाल ही में एक्सेल एंटरटेनमेंट के लिए एक वेब सीरीज पूरी की है. वह अभिनय नहीं करना चाहता है. बेटा विवेक की सहायता कर रहा है. वैक्सीन का पूरा पोस्ट प्रोडक्शन उसके द्वारा संभाला गया था. साइंटिफिक वाला सब कुछ मन्नान द्वारा संभाला गया है. हर कोई कुछ इमोशनल एंगल चाहता था लेकिन उसने इसकी इजाजत नहीं दी.’ उसे पता हैं कि अपने माता-पिता को कैसे कंट्रोल है. विवेक जब सेट पर होते हैं तो बहुत सहज रहते हैं।.वह युवा पीढ़ी के साथ तालमेल बिठा लेते है. उन्होंने मन्नान और उनके दोस्तों के साथ काम किया और हमारे अधिकांश असिस्टेंट युवा थे. हमारे पास इतना बड़ा युवा आधारित देश है. हमें उनकी जरूरतों को पूरा करना होगा. यह बहुत बुद्धिमान पीढ़ी हैं और पहली पीढ़ी है,जो औपनिवेशिक मानसिकता से पूरी तरह मुक्त है. हमारे माता-पिता उस माहौल में पले-बढ़े और उन्होंने हमें भी इसके लिए बाध्य किया. आज के बच्चे ऐसे नहीं है.

आप केवल विवेक के साथ काम करना चाहती हैं या आप अन्य निर्देशकों के लिए भी ओपन हैं?

बेशक मैं अन्य निर्देशकों के लिए भी तैयार हूं, लेकिन विवेक मुझे समय ही नहीं देते. परिवार के साथ काम करना आरामदायक है. इसके अलावा मैं यहां सिर्फ पैसा कमाने के लिए नहीं हूं. बहुत बड़े घर और गाड़ी की चाह नहीं है.

क्या आपस में बहस नहीं होती हैं?

नि: संदेह हम करते हैं. तर्कों के बिना जीवन कितना उबाऊ होगा. बिना किसी बहस के आप कैसे समझौता करेंगे.

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