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Exclusive: फिल्में, ओटीटी से ज़्यादा पैसे मुझे टीवी में मिलते हैं, तो टीवी करते रहना पड़ता है – सुशांत सिंह

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स्टार भारत का लोकप्रिय शो सावधान इंडिया छोटे पर्दे पर लौट आया है. इस बार के सीजन का नाम क्रिमिनल डिकोड है. इस नए सीजन में पुराने लोकप्रिय होस्ट सुशांत सिंह ही शो को होस्ट करते नजर आ रहे हैं. अपने लुक पर बातें करते हुए सुशांत बताते हैं अभी बाल व्हाइट हो गए हैं, तो उनको रंगने के बजाय जैसे हैं, वैसे ही उनको लेकर आने का फैसला किया, कपड़े निजी जिंदगी में इतने अच्छे नहीं पहनता, जितना इस शो के दौरन मुझे पहनाया जाता है. इस नए सीजन और शो से जुड़े काई दूसरे पहलुओं पर उर्मिला कोरी के साथ हुई बातचीत के प्रमुख अंश…

आप पहले भी इस शो का हिस्सा रहे हैं, एक बार फिर से इस शो से जुड़कर कैसा लग रहा है?

बहुत बढ़िया लग रहा है. शो और मैं एक साथ बढ़े हैं. घर-घर पहुंचे हैं और वापस एंकर के तौर पर उन्होंने वापस मुझे लाया है, जाहिर सी बात है अच्छा लग रहा है. ये शो मेरे दिल के बेहद करीब रहा है. इतना समय नहीं दिखा तो बहुत सारे प्रशंसकों के संदेश भी आते थे कि सर कब दिखेंगे. डेढ़ दशक से भी ज़्यादा समय से मैं शो से जुड़ा हुआ हूं.

इस शो से जुड़ा एक विवाद भी है, जब आपकी निजी जिंदगी में आपके विचारों की वजह से शो में आपको रिप्लेस कर दिया गया था, ऐसे में शो से दोबारा जुड़ते हुए हिचक नहीं थी?

मैं हमेशा जो काम करता हूं. दिल से करता हूं. मैंने हमेशा ये बात कहीं है किसी सावधान इंडिया ने जो मुझे दिया है, मैं उसको शब्दों में नहीं बोल सकता हूं.. सावधान इंडिया से वापस बुलावा आया, तो ना करने का कोई सवाल ही नहीं था, जब तक बुलाया जाता रहेगा. मैं हमेशा इस शो का हिस्सा बनता रहूंगा.

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डेढ़ दशक बीत चुके हैं, इस तरह के अपराध के कार्यक्रमों को अभी भी कितना प्रासंगिक मानते है?

जब तक इंसान है और इंसानी फितरत है तब तक अपराध है. अपराध है, तो उससे जुड़ी कहानियां बोली जायेंगी, दिखायी जायेंगी. ये ऐसा टॉपिक है, जो कभी भी पुराना नहीं होगा, आप जितना दिखाएंगे लोग उतना इसे देखते हैं. दुर्भाग्य से ही सही ये हमेशा सभी को पसंद आता है, और झकझोरता भी है, प्रासंगिक भी है.जिस तरह से संसाधनों की कमी हो रही है लोगों में एक तरह का आक्रोश बढ़ गया है. अपराध की तीव्रता और संख्या भी बढ़ ही रही है.

अक्सर ऐसी बातें सुनने को मिलती है कि ऐसे दिखाया गया अपराध और बढ़ता है क्योंकि क्रिमिनल माइंड इसे एक टूल की तरह इस्तेमाल करता है ?

पुरानी कहावत है कि आप जन्म से ऐसे होते हैं या हालात आपको बना देता है, लेकिन आपराधिक मनोविज्ञान का जहां तक सवाल है. वह किसी भी कहानी से यही सीखता है कि इस अपराध को और शातिर तरीके से कैसे किया. आप कोई भी क्राइम शो, फिल्में या वेब शो देख लीजिए अंत में अपराधी पकड़ा जाता है, मारा जाता है या जेल हो जाती है, लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं यहीं सीखना चाहते हैं कि अगर ये अपराधी पकड़ा गया, तो खुद को कितना शातिर बनाया जाए कि पकड़े ना जाए. एक आम आदमी इस तरह नहीं सोचता है. आम आदमी इस तरह के शो एंटरटेनमेंट या जागरूकता के तौर पर देखता है. क्रिमिनल माइंड यही सोचता है कि मैं इससे ज्यादा शातिर अपराध कैसे करूं. हमारा नया सीज़न इसी को डिकोड कर रहा है कि एक अपराधी दिमाग कैसे सोचता है.

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एक एंकर के तौर पर आपके इनपुट क्या होते हैं क्योंकि आप खुद भी बहुत अच्छा लिखते हैं?

अब तक चैनल और निर्माता मुझ पर मेहरबान रहे हैं, तो मुझे उन्होंने अपनी बात रखने का हमेशा मौका दिया है, एंकर लिंक मुझे पसंद नहीं आया या हम शो की थीम से भटक रहे हैं तो ऐसे में हमेशा मुझे मेरी बात रखने का मौका मिला है. एक छोटा सा उदाहरण दूं तो अगर आप सावधान इंडिया के मेरे पुराने एपिसोड्स उठाकर देख लें, तो आप पाएंगी कि औरतों के प्रति अपराध को दर्शाते हुए कहीं भी आपको एक भी शब्द ऐसा नहीं मिलेगा, जहां कहा गया हो कि उसने औरत की इज्जत लूट ली. मैंने इस वाक्य को शुरू से ही हटा दिया क्योंकि ये गलत धारणा है. इज़्ज़त अपराध करने वाले की जाती है, जिसका साथ अपराध हुआ है, उसकी नहीं जाती है. ये छोटी-छोटी चीजें हैं, जिनका ध्यान रखते हुए हम आगे बढ़ते हैं. किसी भी समुदाय और वर्ग को ना लगे कि उनके प्रति असंवेदनशील हैं अपराध इंसान करता है. कोई वर्ग, पेशा या समाज नहीं करता है

आप उन चुनिंदा एक्टर्स में से हैं, जिन्होनें टीवी, ओटीटी और फिल्मों में एक साथ बैलेंस बनाना रखा है?

आप इसे मेरी खुशकिस्मती बोले या बदकिस्मती के फिल्म और ओटीटी में काम करने के बाद भी मुझे टीवी में काम करना जरूरी है, क्योंकि टीवी में मुझे सबसे अच्छे पैसे मिलते हैं. सावधान इंडिया की खास बात ये भी है कि मैं यहां खुद को पेश करता हूं, टीवी पर एक ही तरह के शो चलते हैं और मैं उनका हिस्सा नहीं बन पाता हूं.

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आज के समय में जवान और गदर जैसी फिल्मों की सफलता से बातचीत शुरू हो गयी है कि अब सिनेमा हॉल यथार्थवादी फिल्मों के लिए नहीं रह गए हैं ?

उनके लिए ओटीटी है .अब थिएटर में इसी तरह की फिल्में आएंगी.वैसे भी थिएटर में फिल्में देखना महंगा है तो लोग वैसी ही फिल्म को देखेंगे,जो सबके साथ एन्जॉय कर सकें।जिसका अनुभव बड़े पर्दे पर बहुत खास हो.

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