देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आज 5वीं पुण्यतिथि मनायी जा रही है. इस मौके पर उनके समाधी स्थल सदैव अटल में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जा रही है. अटल बिहारी वाजपेयी ऐसे वक्ता था, जिन्हें न केवल उनकी पार्टी के लोग सुनना चाहते थे, बल्कि विरोधी पार्टियों के नेता भी उन्हें ध्यान से सुनते थे. उनकी पुण्यतिथि के मौके पर हम आज से 28 साल पहले का वो ऐतिहासिक भाषण शेयर कर रहा हूं. जिसे लोक आज भी बड़े चाव से सुनते हैं. वाजपेयी ने वह ऐतिहासिक भाषण सदन में दिया था, जब कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया था. वाजपेयी 16 मई 1996 को पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने थे. लेकिन 13 दिन बाद विपक्ष ने उनकी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया. जिसमें वाजपेयी की अगुआई में सरकार विश्वास मत हार गई. जिसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी को इस्तीफा देना पड़ा था. 28 मई, 1996 को अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने से पहले लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान जोरदार भाषण दिया था. वह भाषण अभी भी लोगों के जेहन में है और काफी याद किया जाता है. उस समय वाजपेयी जी ने सभी राजनीतिक दलों को राजनीति का धर्म और मर्म का पाठ पढ़ाया था. उन्होंने उस समय कहा था, ‘सत्ता का खेल तो चलेगा, सरकारें आएंगी-जाएंगी, पार्टियां बनेंगी-बिगड़ेंगी मगर ये देश रहना चाहिए. इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए’. ‘देश में ध्रुवीकरण नहीं होना चाहिए. न सांप्रदायिक आधार पर, न जातीय आधार पर और न ही राजनीति ऐसे दो खेमों में बंटनी चाहिए कि जिनमें संवाद न हो, जिनमें चर्चा न हो.
Vajpayee became the Prime Minister of the country for the first time on 16 May 1996. But after 13 days, the opposition brought a no-confidence motion against his government. In which the government led by Vajpayee lost the vote of confidence. After which Atal Bihari Vajpayee had to resign. On May 28, 1996, Atal Bihari Vajpayee gave a forceful speech during the discussion on the no-confidence motion in the Lok Sabha before resigning from the post of Prime Minister. That speech is still in people’s minds and is fondly remembered. At that time, Vajpayee ji had taught the religion and heart of politics to all the political parties. He had said at that time, ‘The game of power will continue, governments will come and go, parties will form and break, but this country should remain. The democracy of this country should remain immortal. There should be no polarization in the country. Neither on communal basis, nor on caste basis, nor politics should be divided into such two camps, in which there is no dialogue, in which there is no discussion.